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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका

यह पुस्तक : 'विवेकानन्द-साहित्य' के दस खण्डों में बिखरे स्वामीजी के व्यक्तित्व के विकास विषयक विचारों को प्रस्तुत करने का यह एक विनम्र प्रयास है। आशा है इसका अध्ययन हमारी युवा पीढ़ी को स्वामीजी तथा उनके साहित्य का गहन अध्ययन करने को प्रेरित करेगी तथा उनमें अपने चरित्र को गढ़ने तथा व्यक्तित्व का विकास करने की इच्छा जगायेगी। एक विकसित व्यक्तित्व तथा उत्तम चरित्र व्यक्ति के चुने हुए क्षेत्र में उत्कृष्टता सुनिश्चित करेगा और इस प्रकार यह व्यक्ति तथा साथ ही राष्ट्र के विकास में भी योगदान करेगा।

स्वामीजी कहते हैं - ''तुम स्वयं को और प्रत्येक व्यक्ति को उसके सच्चे स्वरूप की शिक्षा दो और घोरतम मोह-निद्रा में पड़ी हुई जीवात्मा को इस नींद से जगा दो। जब तुम्हारी जीवात्मा प्रबुद्ध होकर सक्रिय हो उठेगी, तब तुममें स्वयं ही शक्ति आयेगी, महिमा आयेगी, साधुता आयेगी और पवित्रता भी स्वयं ही चली आयेगी - तात्पर्य यह है कि जितने भी अच्छे गुण हैं, वे सभी तुम्हारे भीतर आ जायेंगे।''

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