ई-पुस्तकें >> व्यक्तित्व का विकास व्यक्तित्व का विकासस्वामी विवेकानन्द
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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका
यह पुस्तक : 'विवेकानन्द-साहित्य' के दस खण्डों में बिखरे स्वामीजी के व्यक्तित्व के विकास विषयक विचारों को प्रस्तुत करने का यह एक विनम्र प्रयास है। आशा है इसका अध्ययन हमारी युवा पीढ़ी को स्वामीजी तथा उनके साहित्य का गहन अध्ययन करने को प्रेरित करेगी तथा उनमें अपने चरित्र को गढ़ने तथा व्यक्तित्व का विकास करने की इच्छा जगायेगी। एक विकसित व्यक्तित्व तथा उत्तम चरित्र व्यक्ति के चुने हुए क्षेत्र में उत्कृष्टता सुनिश्चित करेगा और इस प्रकार यह व्यक्ति तथा साथ ही राष्ट्र के विकास में भी योगदान करेगा।
स्वामीजी कहते हैं - ''तुम स्वयं को और प्रत्येक व्यक्ति को उसके सच्चे स्वरूप की शिक्षा दो और घोरतम मोह-निद्रा में पड़ी हुई जीवात्मा को इस नींद से जगा दो। जब तुम्हारी जीवात्मा प्रबुद्ध होकर सक्रिय हो उठेगी, तब तुममें स्वयं ही शक्ति आयेगी, महिमा आयेगी, साधुता आयेगी और पवित्रता भी स्वयं ही चली आयेगी - तात्पर्य यह है कि जितने भी अच्छे गुण हैं, वे सभी तुम्हारे भीतर आ जायेंगे।''
- व्यक्तित्व का विकास
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- व्यक्तित्व क्या है?
- व्यक्तित्व का विकास
- मानव की दिव्यता
- जीवन का लक्ष्य सुख नहीं है
- चरित्र में बदलाव कैसे लायें ?
- विचारों का प्रभाव
- नकारात्मक भावनाओं को संयमित करो
- पहले स्वयं को बदलो
- पूरी जिम्मेदारी अपने कन्धों पर लो
- कर्म कैसे करें ?
- स्वामी के समान कर्म करो
- इस संसार की भलाई
- निःस्वार्थता ही सफलता लायेगी
- प्रेम ही लाभकारी है
- दुर्बलता ही मृत्यु है
- साहसी बनो
- वीरता
- अपने आप पर विश्वास
- अनुकरण बुरा है
- नैतिकता क्या है ?
- आदर्श को पकड़े रहो
- एकाग्रता की शक्ति
- समत्व भाव का विकास करो
- मुक्त बनो
- बढ़े चलो
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